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कबीर साहेब की जीवनी
कबीर साहेब सशरीर सतलोक से सीधे धरती पर आये l1
लहरतारा तालाब मे निरु नीमा को अपनी लीला अनुसार मिले. स्वामी रामानन्द के शिष्य असतानन्द इसके साक्षी बने1
चौदह सौ पचपन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ ठए।
जेठ सुदी बरसायत को पूरनमासी तिथि प्रगट भए॥
घन गरजें दामिनि दमके बूँदे बरषें झर लाग गए।
लहर तलाब में कमल खिले तहँ कबीर भानु प्रगट भए॥[1]
कबीर साहेब का नाम वेदों मे कविर्देव. कुरआन मे कबीरा खबीरा कबीर. गुरु ग्रथ साहेब मे आलम बड़ा कबीर तथा बाईबल मे कबीर ऑलमाइटी लिखा हुआ है 1
कबीर साहेब की लीलाएं
कबीर साहेब ने स्वामी रामानन्द जी . सेउ . कमाल . कमाली को पुनर्जीवित किया 1
सिकंदर लोधी का जलन का रोग ठीक किया 1
कबीर साहेब का मगहर के लिए प्रस्थान
कबीर परमात्मा
द्वारा शिवजी के श्राप से सूखी नदी में जल बहाना
मगहर में पहुंचते ही परमात्मा कबीर जी ने जब बहते पानी में स्नान करने की इच्छा जताई तो बिजली खां ने कहा कि यहां एक आमी नदी है जो शिवजी के श्राप से सूखी हुई है। परमात्मा कबीर जी ने नदी के किनारे पर पहुंचकर उंगली के इशारे से वर्षों से सूखी नदी में जल प्रवाहित कर दिया ।
राम और अल्लाह एक ही हैं!
600 साल पहले कबीर साहेब ने मगहर में शरीर छोड़ने से पहले सभी लोगो को अपना ज्ञान समझाते हुए कहा कि राम और अल्लाह एक ही हैं सभी धर्मों के लोग एक परमपिता की संतान है।
मगहर में परमात्मा का चमत्कार!
कबीर परमेश्वर जी के अद्भुत चमत्कार जैसे अकाल से बचाना, सूखी आमी नदी बहाना, सशरीर सतलोक जाना आदि देखकर तथा उनके द्वारा दिए तत्वज्ञान का अनुसरण करके मगहर के सर्व हिंदू-मुसलमान आज भी विशेष प्रेम से रहते हैं। आज तक उनकी धर्म के नाम पर कोई लड़ाई नहीं हुई।
आदरणीय गरीबदास जी महाराज ने परमात्मा कबीर साहेब की मगहर लीला(सशरीर सतलोक गमन) का वर्णन करते हुए कहा है कि,
"देख्या मगहर जहूरा सतगुरु, कांशी मैं कीर्ति कर चाले, झिलमिल देही नूरा हो।"
मगहर का मौहल्ला कबीर करम"
कबीर परमेश्वर जी ने मगहर रियासत में 14वीं शताब्दी में पड़े भीषण अकाल को अपनी समर्थ शक्ति से टालकर वर्षा करके सबको जीवनदान दिया। हजारों हिंदू-मुसलमानों ने उपदेश लिया। एक 70 वर्षीय निःसंतान मुसलमान दंपती को पुत्र होने का आशीर्वाद दिया। वर्तमान में उस व्यक्ति का एक पूरा मौहल्ला बना हुआ है, नाम है "मौहल्ला कबीर करम"
मगहर में हिन्दू मुसलमानों के बीच का युद्ध टाल दिया था परमात्मा ने।
हिन्दू मुसलमानों में यह झगड़ा था कि वे अपने गुरु कबीर परमेश्वर जी का अंतिम संस्कार अपनी-अपनी विधि से करना चाहते थे। कबीर जी द्वारा मगहर में शरीर त्यागने के बाद उनके शरीर की जगह सुगन्धित पुष्प मिले जिस वजह से हिन्दू मुस्लमान का भयंकर युद्ध टला था। वे सभी एक दूसरे के सीने से लग कर रोये थे जैसे किसी बच्चे की माँ मर जाती है। यह समर्थता कबीर परमेश्वर जी ने दिखाई जिससे गृहयुद्ध टला।
मगहर में भाईचारे की मिसाल!
हिन्दू व मुसलमानों के बीच धार्मिक सामंजस्य और भाईचारे की जो विरासत कबीर परमात्मा छोड़कर गए हैं उसे मगहर में आज भी जीवंत रूप में देखा जा सकता है।
मगहर में जहाँ कबीर परमेश्वर जी सशरीर सतलोक गए थे, वहां हिंदू-मुसलमानों के मंदिर और मजार 100-100 फुट की दूरी पर बने हुए हैं।
"कबीर, विहंसी कहयो तब तीनसै, मजार करो संभार।
हिन्दू तुरक नहीं हो, ऐसा वचन हमार।"
कबीर, क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा।
जो कासी तन तजै कबीरा, रामे कौन निहोरा।।
मगहर में मरने वाला गधा बनता है इस भ्रम का खंडन करते हुए कबीर परमात्मा ने बताया कि जिसके हृदय में परमात्मा का वास हैं वह चाहे काशी में मरे या मगहर में उसकी मुक्ति निश्चित है।
यदि काशी में तन छोड़ने से मुक्ति होती है तो भगवान को भजने की क्या आवश्यकता थी?
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